महापुरुष अच्युतानंद दास जी के द्वारा लिखी भविष्य मालिका की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“बचिहिर चरणनख छटार महिमा रख्य संख्या कल्पे कल्पी नपारिले ब्रह्माजे।”
अर्थात –
प्रभु के अभय पादपद्म के नखों की महिमा का सम्पूर्ण वर्णन तो ब्रह्मांडों के सृजनकर्ता स्वयं ब्रह्माजी भी नही कर पाये हैं तो उन मधुसूदन भगवान की महिमा का वर्णन मैं तुच्छ भला कैसे कर सकता हूँ। केवल प्रभु की भक्ति में स्वयं को विलीन कर पाने पर ही प्रभु की दया व आशीर्वाद की प्राप्ति संभव है। कोई स्वयं को कितना भी बड़ा क्यों ना कर ले पर प्रभु की महिमा का बखान तो सहस्त्र मुखों से भी असंभव ही है।
महापुरुष अच्युतानंद जी इस विषय पर पुनः लिखते हैं..
“आउ केते ग्रंथ अछई गुपत ग्रंथ छि प्रभु पास,
पद्मकल्पटिका समस्त भकत महिमा केति प्रकासो,
खेला उदय हेब भकतंक लीला भारी होइब लीला उदय हेब।”
अर्थात –
महापुरुष अच्युतानंद जी ने एक लाख पचासी हजार ग्रंथों की श्रंखला लिखी है। जिसके तीन सौ खंड है, जिसे भविष्य मालिका नाम से जाना जाता है। मालिका ग्रंथ के पद्मकल्पटिका में विश्व के समस्त भक्तों के विषय में उन्होंने विस्तार से लिखा है। इस दिव्य ग्रंथ को स्वयं ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और महादेव ने देवताओं को अवगत कराकर सुरक्षित स्थान पर गुप्त रूप से रखवाया था।
महापुरुष पुनः लिखते हैं…
“तेंतीस कोटि देवता दिगपाल ब्रह्मा शंकरभा वीणा अखय अवय ग्रंथ रखीछन्ति बिरजा खेत्रे गोपन।”
अर्थात –
महापुरुष कहते हैं कि इस दिव्य ग्रंथ की रचना मैंने नही स्वयं भगवान महाविष्णु, ब्रह्माजी व महादेव ने मिलकर की है। यह एक अमर ग्रंथ है। प्रत्येक युग में जब सुधर्मा सभा होती है, और चतुर्युग के भक्तों का मिलन होता है उसी समय इस पवित्र ग्रंथ का प्रकाश होता है।
महापुरुष पुनः इस विषय पर लिखते हैं…
भगवान श्रीकृष्ण ने अपने और माँ लक्ष्मी के अंग के आभूषणों को इस दिव्य अक्षय ग्रंथ पद्मकल्पटिका के साथ गुप्त रूप से रखा था। जब निकट भविष्य में जाजपुर के पवित्र भूमि पर सुधर्मा सभा होगी तब भक्तों के नाम, वर्ण, पहचान, गांव, जन्म स्थान, कौन किस युग मे क्या थे, माता पिता का नाम प्रकाश किया जाएगा। पांच नदियों के संगम स्थल बैतरणी नदी के तट पर सुधर्मा सभा बैठेगा। उस सभा में कैलाशपति महादेव स्वयं माँ पार्वती को लेकर उपस्थित होंगे। उस सभा में ब्रह्मा जी भी उपस्थित होंगे।
महापुरुष अच्युतानंद जी विवाह के विषय पर लिखते हैं…
“लख्मी नरसिंह मिलन खंडगिरि ठारे होइबो पूर्ण रामचंद्ररे,
जहूँ आसिबे चतुरानन रामचंद्ररे महादेब जेआसिबे तांडव नृत्यरे मग्न होइबो रामचंद्ररे,
अस्ट दुर्गा संग तरेथिबे रामचंद्ररे एखेल गुपत हेब भक्तबिना अन्य केनाजनिब रामचंद्ररे,
अउ एखेल गुपते हेब रामचंद्ररे।”
अर्थात –
भगवान कल्कि का विवाह उत्सव माँ महालक्ष्मी के साथ उड़ीसा के खंडगिरि पहाड़ के नीचे आश्रम पर ब्रह्माजी के द्वारा सम्पन्न होगा। उस विवाह में स्वयं महादेव अपने साथ माँ पार्वती को लेकर आश्रम पर पधारेंगे। महादेव विवाह के इस मंगलमय घड़ी में अति आनंदित व मगन होकर तांडव नृत्य प्रस्तुत करेंगे। महादेव के साथ अष्टदुर्गा और माँ योगमाया भी शुभ विवाह में उपस्थित होंगी। प्रभु के कुछ अच्छे भक्त भी उस विवाह में उपस्थित होंगे। अच्छे भक्त का तात्पर्य वो गरीब हो सकते हैं पर पवित्र होंगे और उनकी भक्ति दृढ़ एवं निश्च्छल होगी। ब्रह्ममूहर्त में यह दिव्य विवाह गुप्त रूप से संपन्न होगा।
विवाह के पश्चात उड़ीसा के जाजपुर की पवित्र भूमि पर सुधर्मा सभा होगी। जिसका नेतृत्व स्वयं भगवान कल्कि करेंगे। यह पृथ्वी के इतिहास में एक दुर्लभ घटना होगी जब स्वयं भगवान कल्कि एक राजा के रूप में शासन का शुभारंभ करेंगे व सम्पूर्ण विश्व में उन्ही का शासन होगा। भगवान कल्कि अपने जन्मस्थान जाजपुर से ही सम्पूर्ण विश्व का नेतृत्व करेंगे एवं सम्पूर्ण विश्व में एक पताका की छांव में सुख व शांति की शुरुआत होगी।
“जय जगन्नाथ”