युग चक्र के अनुसार पहला सतयुग, दूसरा त्रेतायुग, तीसरा द्वापरयुग और आखिर में कलियुग का आगमन होता है। वर्तमान समय में कलियुग की सम्पूर्ण आयु समाप्त हो चुकी है और युग संध्या काल चल रहा है। कोई भी युग के अंत और एक नए युग के प्रारंभ के समय को युगसंध्या या संगम युग कहा जाता है। कलियुग की आयु मनुस्मृति के आधार पर 4,32,000 वर्ष मानी जाती है। परंतु मनुष्य कृत घोर पाप कर्मों के कारण से 4,27,200 वर्ष क्षय हो जायेगी और मात्र 4,800 वर्ष ही कलियुग की भोगदशा होगी यह वर्णन मिलता है। मनुस्मृति के अनुसार नीचे दिए गए श्लोक इसका प्रमाण देते हैं –
“चत्त्वार्य्जाहु सहस्राणि तत् कृतम् युगम्,
तस्य तवच्छता संध्या संध्यांशश्च तथाविधः”
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है – चार हजार वर्ष के पश्चात, सतयुग आता है। उस चार हजार वर्ष की परमायु तथा उसके संध्या और संध्यांश का काल उतना ही शत वर्ष होता है।
कलियुग की आयु= 4000 वर्ष
आरंभ और अंत में दो संध्या= 400X2= 800 वर्ष
कुल मिलाकर 4,800 वर्ष कलियुग की भोगदशा होगी।
पंचसखाओं में से अनन्य सखा, भगवान विष्णु जी के परम प्रिय सखा सुदामा जी, ब्रह्म गोपाल महापुरुष अच्युतानंद दास जी महाराज ने महाप्रभु निराकार जी के निर्देश से कलियुग की आयु या भोगाभोग समय को मनुस्मृति में वर्णित 4,800 वर्ष को पुनः बदलकर भविष्य मालिका में 5,000 वर्ष उल्लेख किया है।
“चारि लक्ष जे बतिश सहस्त्र, कलियुग र अटइ आयुष ।
पाप भारा रे कलि तुटि जिब, पांच सस्र कलि भोग होइब।”
उपरोक्त पंक्तियों में अच्युतानंद दास जी महाराज कहते हैं कि – कलियुग की आयु 4,32,000 वर्ष है। लेकिन मनुष्य कृत पाप कर्मों के कारण इसकी आयु का क्षय होकर मात्र 5,000 वर्ष ही भोग होगा।
वर्तमान में माँ बिरजा पंजिका, जगन्नाथ पंजिका, कोहिनूर पंजिका आदि के अनुसार कलियुग की आयु का शुरुआत से आज तक 5,125 वर्ष भोग चल रहा है। इसका अर्थ यह है कि कलियुग पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है और हम युग संध्या या संगम युग में पदार्पण कर चुके हैं। इसलिए वर्तमान समय में मानव समाज के कल्याण हेतु ‘भविष्य मालिका ग्रंथ’ की अति आवश्यकता है। पुनः महापुरुष अच्युतानंद दास जी भविष्य मालिका में कहते हैं कि –
“संसार मध्यरे केमंत जाणिबे नर अंगे देह बहि
गत आगत जे युग र ब्यबस्था समस्तन्कु जणा नाहीं”
(शिव कल्प नबखंड नीर्घण्ट)
महापुरुष अच्युतानंद दास जी महाराज ने “मालिका ग्रंथ” – शिव कल्प नवखंड नीर्घण्ट में वर्णन किया है कि – मनुष्य माया मोह से भ्रमित हो कर युग परिवर्तन या उसके आदि अंत में आने वाली आपदा संबंधी बातें नहीं जान पाएगा। ज्ञानी सज्जन भी पथभ्रष्ट और भ्रमित हो जाएंगे और आध्यात्मिक परिवेश में भी बढ़ा चढ़ा कर बोलेंगे कि अभी कलियुग की बाल्यावस्था चल रही है।
“उदयति: यदि भानु पश्चिम दिग बिभागे,
बिकशति यदि पद्म पर्वतानां शिखाग्रे।
प्रचलति यदि मेरु शितो ताप्ती: बण्ही,
नटलतिं खलु बाक्य सज्जनानां कदाचित।”
अर्थात् –
आने वाले समय में सूर्य देव पश्चिम में उदय हो सकते हैं, पर्वत शिखर में कमल खिल सकता है, मेरु पर्वत दक्षिण से उत्तर दिशा में जा सकते हैं, आग ठंडक प्रदान कर सकती है या बर्फ गर्मी भी प्रदान कर सकती है, किन्तु मालिका ग्रंथ में वर्णित महापुरुष अच्युतानंद दास जी की वाणी या किसी भी संत सज्जन और महापुरुषों की वाणी कदाचित असत्य नहीं हो सकती।
“जय जगन्नाथ”