पंच सखाओं द्वारा लिखित भविष्य मालिका ग्रंथ के अनुसार, कलियुग में, भगवान के तीन अवतार इस धरा धाम में अवतीर्ण होंगे। महापुरुष अच्युतानंद जी ने “जाई फूल मलिका” पुस्तक में लिखा है:-
“कलि रे तीनि जन्म, हेबे परा प्रभु श्री नारायण, जाई फूल लो,
जाई फूल लो, से तो भक्त जिब जीबन जाई फूल लो”
अर्थात् :-
कलियुग में भक्तों के प्राणनाथ प्रभु श्री नारायण तीन बार धरा धाम पर अवतीर्ण होंगे।
कलियुग में भगवान का पहला अवतार – भगवान बुद्ध
“भविष्य मालिका” के अनुसार, कलियुग के मध्य भाग में भगवान बुद्ध अवतार लेंगे। भक्त कवि जयदेव ने भी इस संबंध में अपने दशावतार स्तुति में बुद्ध अवतार का वर्णन किया है।
“नंदसि यज्ञ- विधेर् अहः श्रुति जातम्
सदय-हृदय-दर्शित-पशु-घातम्
केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे ।”
उपरोक्त श्लोक से प्रमाण मिलता है कि कलियुग के मध्य में, यज्ञ में बड़ी संख्या में जीवित पशुओं की बलि दी जाती थी और मंत्र और तंत्र पद्धति के प्रभाव से होने वाले जीव हत्या अपने चरम सीमा पर थी। सनातन धर्म के सिद्धांत लगभग विलुप्त हो चुके थे। उस समय भगवान के अंश ने, बुद्ध अवतार लेकर धरा धाम में अवतीर्ण हुए और पशु बलि और पशु हत्या का विरोध करते हुए सनातन धर्म की पुनः संस्थापना की।
“ततः कलौ सम्प्रवृत्ते सम्मोहाय सुरद्विषाम्।
बुद्धो नाम्नाजनसुतः कीकटेषु भविष्यति” ।
व्याख्या:-
जब राजा महाराजा तथा प्रजा, अन्याय, अनीति और जीव हत्या के पापों में पूरी तरह लिप्त हो गये तब भगवान ने उन सबके मन को परिवर्तित करने के लिए और सत्य सनातन धर्म की संस्थापना के लिए कीकट प्रदेश में बुद्ध अवतार लिया।
कलियुग में भगवान का दूसरा अवतार – भगवान चैतन्य
कलियुग में दूसरे अवतार के रूप में भगवान ने श्री चैतन्य के नाम से नदिया नवद्वीप ग्राम में जन्म लिया और भगवान विष्णु के महामंत्र को पूरे विश्व में प्रचार किया। साथ ही जीव हत्या का विरोध करते हुए वैष्णव धर्म को धरा धाम में पुनर्जीवित किया।
“कृष्णार प्रघता त्रिगुट प्रकार,
शास्त्रर श्रीमूर्ति आर भक्त कालेबर।”
व्याख्या: भगवान चैतन्य ने नाम संकीर्तन की महिमा और अहिंसा धर्म का प्रचार प्रसार करने के साथ-साथ भक्ति और प्रेम के माध्यम से भगवान तक पहुँचने का विशेष और स्वतंत्र मार्ग दिखाया। वास्तव में उनका यही उपदेश प्रतिमा पूजा श्रीमद भागवत पाठ और भक्ति का सार है।
कलियुग में भगवान का तीसरा अवतार – भगवान कल्कि
“भविष्य मालिका” तथा विभिन्न शास्त्रों में यह उल्लेख किया गया है कि “कलियुग के 5000 वर्ष बीत जाने के बाद, भगवान कल्कि इस धरा धाम में अवतरित होंगे”। अब कलियुग को 5125 वर्ष चल रहा है। इस महत्वपूर्ण तथ्य के आधार से हमें यह समझना होगा कि कलियुग समाप्त हो गया है । अब मानव समाज संगम युग में निवास कर रहा है। मानव समाज जल्द ही धर्म की संस्थापना देखेगा।
“अथसु जुगसंध्यांसे दस्यु प्रयासेषु राजसु।
जनिता विष्णु यशो नमना कल्कि जगतपति”।
व्याख्या:-
जब कलियुग का संध्या समय होगा तब भगवान विष्णु के यश गान करने वाले एक वैष्णव ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि अवतार ग्रहण करेंगे।
“सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मन: ।
भवने विष्णुयशस: कल्कि: प्रादुर्भविष्यति ।। ”
व्याख्या:-
सम्भल ग्राम के प्रमुख ब्राह्मण के घर में जो भगवान विष्णु का यश गान करते होंगे, भगवान कल्कि अवतार ग्रहण करेंगे । पापियों और म्लेच्छों का विनाश करने के लिए प्रभु धरा धाम में मानव शरीर में अवतार लेंगे।
“जय जगन्नाथ”