महापुरुष अच्युतानंद जी व संत भिमोबहि जी के द्वारा लिखी मलिका और भविष्य ग्रंथ की कुछ दुर्लभ पंक्तियाँ व तथ्य-
“ख्यजिबे कष्टथिबा जार घट वृद्ध अंगु जुबाहेबे कहे भीमबोहि तामर अज्ञानी एकाख्यर माने भज।”
अर्थात –
जाजपुर की पवित्र भूमि जहां आदि माता बिरजा सीधे मूर्ति के रूप में उपस्थित हैं, उस पवित्र स्थान में “सुधर्मा सभा” भगवान कल्कि के नेतृत्व में बैठेगी। जो पवित्र भक्त होंगे, उन्हें सुधर्मा सभा में भगवान मधुसूदन के साथ बैठने का अवसर मिलेगा।
उस समय भगवान जगतपति, भक्तवत्सल, दीनबंधु! कल्कि के आह्वान पर कुछ समय के लिए बैकुंठ से उतरेंगे। महादेवी के नेतृत्व में उन सभी भक्तों को उस क्षीरसागर में स्नान करने के लिए भेजा जाएगा।
वे सभी भक्त जो उस पवित्र जल में स्नान करते हैं, यदि वो वृद्धावस्था से घिरे हुए हैं या जिन्हें किसी प्रकार का रोग है या जिन्हें कोई शारीरिक अक्षमता है, वे सभी पवित्र भक्त उस क्षीरसागर के दिव्य जल में डुबकी लगाने से युवावस्था प्राप्त करेंगे। वे सभी भक्त अर्थात् वे सभी देवता जो मानव शरीर में हैं, उनको इस कलियुग के प्रभाव से क्षीण हुए शरीर से मुक्ति मिलेगी और सभी को दिव्य शरीर की प्राप्ति होगी।
इस पर महापुरुष अच्युतानंद जी मालिका में इस प्रकार से लिखते हैं-
“तुलसी पतर गोटी-गोटी भासुथिब खीरनदी नामे एक नदी बहिब।”
अर्थात –
भक्त उस क्षीरसागर के जल में तैरते हुए माता तुलसी के पत्रों को भी देख सकेंगे, जिनका आह्वान भगवान करेंगे। भक्त उसी जल में स्नान कर दिव्य शरीर (किशोरावस्था) को प्राप्त करेंगे।
महापुरुष पुनः लिखते हैं-
“भक्त कलानिधि जेबे कला देबे बांटी कलीरे कलमुस सेठु जिबे परा टूटी।”
अर्थात –
अनन्त कोटि ब्रह्मांड के नाथ महाविष्णु महाकल्कि उसी सभा में अपनी वैष्णव कला (वैष्णव शक्ति अंश) प्रदान करेंगे। उस कला की प्राप्ति के पश्चात भक्तजन कलियुग में बिताए सारे कष्ट और सारी स्मृतियों को भूल जायेंगे।
फिर सत्ययुग की शुरुआत होगी, रामराज्य होगा, सभी भगवान कल्कि के राज्य में परमानंद में समय व्यतीत करेंगे। हर तरफ खुशियाँ होंगी, ऐश्वर्य होगा, कहीं दूर-दूर तक दुःख व दरिद्रता नहीं होगी। शीघ्र ही ऐसे अद्भुत समय की शुरुआत होगी, जो पवित्र भक्त होंगे वो सभी इस दिव्य परिवर्तन को स्वयं देख पाएंगे।
“जय जगन्नाथ”