सत, त्रेता, द्वापर और कलियुग, इन चार युगों में भगवान के पंचसखा इस धरती पर जन्म लेते हैं। युग के अंत में, भगवान विष्णु के धर्म संस्थापना के कार्य में, पंचसखा अपना सहयोग प्रदान करते हैं। स्वकर्म समाप्त करने के पश्चात, भगवान विष्णु गोलोकधाम या वैकुण्ठ में परावर्तन (वापस लौट) करते हैं। पंचसखाओं का जन्म भगवान के अंग से ही होता है। हर युग में भिन्न भिन्न रूप में ये पंचसखा धरा अवतरण करते हैं।
भविष्य मालिका ग्रंथ और पुराणों में यह प्रमाण मिलता है कि सतयुग में पंचसखाओं का नाम था:- नारद, मार्कण्ड, गार्गव, स्वयंभू और कृपाजल। सतयुग के अंत में अपना अपना कार्य समाप्त करने के पश्चात ये पंचसखा फिर वैकुण्ठ को परावर्तन किए थे।
पुनः त्रेता युग के अंत में भगवान श्री रामचंद्र जी के धर्म संस्थापना के समय इन पंचसखाओं ने फिर से जन्म लिया था। उस समय उनके नाम थे :- नल, नील, जामवंत, सुषेण और हनुमान। हालांकि हनुमान जी ने रुद्र अवतार के रूप में जन्म लिया, फिर भी पंचसखाओं में से एक सखा बन कर श्री रामचन्द्र जी के धर्म संस्थापना कार्य में उन्होंने प्रभु जी की सहायता की। उसी तरह त्रेतायुग में अपना अपना कार्य समाप्त करने के पश्चात ये पंचसखा फिर गोलोक वैकुण्ठ को वापस लौट गए।
पुनः द्वापर युग में, पंचसखाओं ने जन्म लिया और कृष्ण जी के आगमन और धर्म संस्थापना के कार्य में उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया। द्वापर युग में उन पंचसखाओं का नाम था:- दाम, सुदामा, सुबल, सुबाहु और श्रीबच्छ।
फिर कलियुग का आगमन हुआ और कलियुग के अंत से लगभग 500 साल पहले भगवान के पंचसखाओ ने फिर से जन्म लिया । कलियुग में पंचसखाओं का नाम था:- अच्युतानंद दास, अनंत दास, यशोवंत दास, जगन्नाथ दास और बलराम दास। इस कलियुग में स्वयं निराकार जी के निर्देश से पंचसखाओं ने धरा अवतरण किया और उन्हीं के निर्देश से ही दिव्य भविष्य मालिका ग्रंथ की रचना की।
भगवान कहते हैं, “इस धरती पर जब जब पापों का भार बढ़ता है, धर्म की ग्लानि होती है, और जब जब सभी लोगों के मन में दया, क्षमा, स्नेह, प्रेम आदि के स्थान पर हिंसा, द्वेष, क्रोध, काम, ईर्ष्या आदि भर जाती है, तब तब युग के अंत में मेरे चारों युगों के भक्तों का दुख दूर करने के लिए और पृथ्वी पर सत्य, शांति, दया, क्षमा और प्रेम की संस्थापना करके, धरती माँ के बोझ को कम करने के लिए, दुष्टों का विनाश करके, संतों की रक्षा करने के लिए, मैं इस धरती पर कल्कि के रूप में अवतार लूंगा। मेरे आने से पहले ही तुम पंचसखा धर्म को पुनः स्थापित करने के लिए और चारों युगों के भक्तों का उद्धार करने के लिए, भक्तों के एकत्रीकरण के लिए और उनको भ्रष्टाचार के मार्ग से सत्य मार्ग पर लाने के लिए, भविष्य मालिका ग्रंथ की रचना करो।
इसलिए अच्युतानंद दास जी लिखते हैं कि –
“हेतु रसाइबा पाईं कि अच्युत साहास्त्र पुराण कले।
कलि काल ठारु बलि काल जाएं हक कथा टा लेखिले”
अर्थात् :-
भक्तों की सुप्त चेतना को जागृत करने के लिए, महापुरुष ने कलियुग से संगम युग तक और संगम युग से सतयुग तक होने वाली सभी बातों की सत्यता को ‘भविष्य मालिका ग्रंथ‘ के रूप में उल्लिखित किया है। इसको पढ़ने से कलियुग के भक्तों की चेतना जागृत होगी और वे भगवान के विषय मे जान कर उनकी शरण में जायेंगे।
महाप्रभु श्रीहरि, जगत के नाथ जगन्नाथ जी ने महापुरुष अच्युतानंद दास जी को एक कमल पुष्प की माला देकर निर्देश दिया था कि जिस स्थान पर इस माला के सभी फूल टूट कर बिखर जायेंगे उसी स्थान पर तुम्हारी साधना पीठ होगी। प्रभु जगन्नाथ जी के निर्देश पर कमल पुष्प की माला लेकर पवित्र श्रीक्षेत्र से निकल कर विभिन्न मार्गों से आगे बढ़ते हुए जब ओडिसा के केंद्रपाड़ा जिले के नेमाल क्षेत्र में चित्रोत्पला नदी के तट पर एक पवित्र स्थान पर पहुंचे, उस स्थान पर माला का अंतिम पुष्प टूट कर गिर पड़ा और माला पुष्प विहीन हो गई एवं सूत्र मात्र शेष बचा। उसी स्थान पर शास्त्रों के अनुसार सतयुग में समुद्र मंथन से प्रकट पद्म फूल भी गिरा था, इसलिए उस स्थान को “पद्म वन” भी कहा जाता है । महापुरुष अच्युतानंद दास जी ने उस स्थान पर ही अपनी साधना आरंभ की। उस स्थान पर ध्यानस्थ हो कर सत, त्रेता, द्वापर और कलि, चार युग के भक्तों के उद्धार के लिए लाखों शास्त्र पुराणों की रचना की। वही स्थान बाद में महापुरुष अच्युतानंद दास जी की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। अच्युतानंद जी ने प्रभु के श्रीचरण कमलों में ध्यान करते हुए उसी सिद्ध स्थल के विषय में लिखा है –
“श्री अच्युत दास नेमाले निवास पद्म बने तांक स्थिति,
प्रभु न्क आज्ञा रु अनुभव करि लक्षे ग्रंथ लेखिछंति।
छतिस संहिता बास्तरि गीता वंशानु सप्त बिन्स रे,
उपवंशानु द्वादस खंड बेनी भविष्य सप्त खंड रे “
अर्थात् –
महापुरुष अच्युतानंद जी उसी पवित्र स्थान पर ध्यान मग्न हो कर एक लाख से अधिक ग्रंथों की रचना की । उनमें से 36 संहिता, 72 गीता, 27 वंशानुचरित्र, 24 उपवंशानु चरित्र और 100 मालिका ग्रंथ की रचना की है। । उन को छोड़ कर बाकी चारों पंच सखाओं, अनंत दास जी महाराज , यशोबंत दास जी महाराज, जगन्नाथ दास जी महाराज और बलराम दास जी महाराज ने भी बहुत से मालिका ग्रंथों की रचना की। इतने ग्रंथों की रचना करने के उपरांत भी पंचसखा लिखते हैं कि हमने कुछ भी नहीं लिखा है, सब कुछ महाप्रभु की आज्ञा से विश्व मानव कल्याण हेतु भविष्य मालिका ग्रंथ की रचना हुई है।
सतयुग में तपी, त्रेता युग में कपि, द्वापर युग में गोपी और कलियुग में भक्त के रूप में चारों युग के भक्त इस अनंत युग में पुनः धरती पर आये हैं। उनकी सुप्त चेतना को जागृत करने और प्रभु की लीला में सम्मिलित होने का समय आ गया है, इस विषय में जनजागृति लाने के लिए, गोलोक वैकुण्ठ के पूर्ण संस्कार को जागृत करने हेतु, पंचसखाओं द्वारा मालिका ग्रंथ की रचना हुई है। भक्त चाहे विश्व के किसी भी कोने में रहें मालिका सुनने और पढ़ने के पश्चात ही उनकी पूर्व चेतना जागृत होगी, और उनको प्रभु के आगमन के विषय में ज्ञात होगा एवं वे सब प्रभु जी की शरण में आ जायेंगे। चार युगों के भक्त, प्रभुजी के श्रीचरणों में आकर शरण लेंगे और अनंत युग में धर्म संस्थापना के कार्य में योगदान देंगे। भक्त महाप्रभु जी के विषय में ज्ञात होने के उपरांत प्रभु द्वारा बताए गए सतयुग के नीति नियमों का सम्पूर्ण विश्व में प्रचार प्रसार करेंगे। भक्त जन प्रभुजी के नाम, गुण तथा महिमा की जय जयकार करेंगे एवं धर्म संस्थापना के कार्य में अपने आपको नियोजित करेंगे। इसके लिए अच्युतानंद जी लिखते है कि –
“भकते उदे होइबे, गां गां बुलि मेलि करिबे, रामचन्द्र रे।
हरि चरणे भजिबे, रामचन्द्र रे”
अर्थात् – भक्त जहाँ भी जायेंगे मिल जुल कर भजन कीर्तन करेंगे और धर्म का प्रचार करेंगे।
पंचसखा संक्षिप्त परिचय-
महापुरुष अच्युतानंद जी का जन्म सन् 1485 में ओडिसा के केन्द्रपाड़ा जिले के तिलकणा(त्रिपुरा भी कहा जाता है) गांव में पिता दीनबंधु खुंटिया और माँ पद्मावती जी की गोद में हुआ। महापुरुष अच्युतानंद दास जी 1,85,000 ग्रंथों की रचना की थी एवं ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी पर नेमाल पीठ में समाधिस्थ हो कर बैठे और पूर्णिमा के दिन अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण किया (शून्य में अंतर्धान हो गए)। उनके ग्रंथों में -हरिवंश पुराण, गोपालन्क ओगाल ओ लउडि खेल, बारमासि गीता, शून्य संहिता, अणाकार ब्रह्म संहिता, मणिबंध गीता, जुगाब्धि गीता, बीजसागर गीता, अभेद कबच, अष्ट गुज्जरी नब गुज्जरी, शरण पंजर, स्त्रोत, बीप्र बाचक, मान महिमा और बहुत से भजन, पटल, रास, जणाण, चउतिसा(उड़िया भाषा के 34 अक्षर से शुरु होने वाली कविता 34 पद वाली कविता को चउतिसा बोला जाता है), टीका, मालिका आदि श्रेष्ठ हैं और कुल मिलाकर लाखों ग्रंथों की रचना की है|
महापुरुष शिशु अनंत दास ओडिसा के पुरी जिले में भुवनेश्वर के निकट बालिपाटणा गांव में 1488 में पिता कपिलेन्द्र और माँ गौरा देवी के घर में जन्म लिए थे। उन्होंने भी बहुत से ग्रंथों और मालिका की रचना की थी। उनके ग्रंथों में से हेतु उदय भागवत, भक्ति मुक्ति दायक गीता, शिशु बेद टीका, शुन्य नाम भेद, अर्थ तारेणी, उदे बाखरा, ठीक बाखरा और बहुत से भजन, चउतिसा, मालिका ग्रंथ आदि मुख्य रचनायें हैं।
श्री जगन्नाथ दास जी महाराज का जन्म ओडिसा के पुरी जिले में कपिलेश्वर गांव में पिता भगवान दास और माँ पद्मावती के गोद में हुआ था। उन्होंने संस्कृत में श्रीमद्भागवत के बाद सर्वप्रथम उड़िया भाषा में श्रीमद्भागवत महापुराण की रचना की थी, उसके बाद बहुत से पुराण शास्त्र और भविष्य मालिका ग्रंथों की रचना की। उनके ग्रंथों में से – षोल चउपदि, चारि चउपदि, तुलाभिणा, दारु ब्रह्म गीता, दीक्षा संबाद, अर्थ कोइलि, मृगुणी स्तुति, गुप्त भागवत, अनामय कुंडली, श्रीकृष्ण कल्पलता, नित्य गुप्त चिंतामणि, नीलाद्री बिलास, कलि मालिका, इंद्र मालिका ग्रंथ आदि प्रमुख हैं। उनके शास्त्र ज्ञान और भक्ति से मुग्ध होकर भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने उनको ‘अतिबडि‘ उपाधि से विभूषित किए थे।
महापुरुष बलराम दास जी ओडिसा के पुरी जिले में चन्द्रपुर गांव में 1470 (कहीं कहीं पर 1482 भी बताया गया है) में पिता शोमनाथ महापात्र और माँ महामाया देवी के गोद में जन्म लिए थे। दाढ्यता भक्ति, दांडी रामायण, ब्रह्माण्ड भूगोल, बउला गाई गीत, कमल लोचन चउतिसा, कान्त कोइलि, लक्ष्मी पुराण, बेढा परिक्रमा, सप्तांग योगसार टीका, बज्र कबच, ज्ञान चुडामणी (गद्य), ब्रह्म टीका (गद्य) आदि बहुत से शास्त्र पुराण और मालिका ग्रंथ की भी रचना की। उनका देहांत पुरी जिले में समगरा पाट नामक जगह पर हुआ।
महापुरुष यशोवंत दास जी का जन्म ओडिसा के कटक जिले में अढंग निकटस्थ नंदी ग्राम में क्षत्रिय वंश में 1482 (कहीं कहीं पर 1486 भी लिखा गया है) में पिता बलभद्र मल्ल माँ रेखा देवी के गोद में हुआ। वह चौरासी आज्ञा, शिब स्वरद्वय, षष्ठीमला, प्रेम भक्ति ब्रह्म गीता, टीका गोबिंद चन्द्र (करूण रस में भरी हुई कविता होने के कारण बंगाल, असम से लेकर उत्तर भारत के सभी क्षेत्रों में विख्यात है) आदि बहुत से शास्त्र पुराण के साथ साथ मालिका ग्रंथों की भी रचना की। वे मार्गशीर्ष मास शुक्ल पक्ष षष्ठी (ओढणी षष्ठी) के दिन शरीर त्याग दिए थे।
पंचसखा आध्यात्मिक तत्व ज्ञान संपन्न थे। हर समय वे सब निराकार (भगवान जगन्नाथ) जी के साथ सूक्ष्म रूप से संपर्क में रहते थे, और निराकार जी जो आगत भविष्य के विषय में बताते थे उन सभी बातों को भविष्य मालिका ग्रंथ में लिखते थे। इसके विषय में ब्रह्म गोपाल महाज्ञाता अच्युतानंद जी उल्लेख करते है कि
“आगम भाव जाणे यशोबंत गारकटा जंत्र जाणे अनंत
आगत नागत अच्युत जाणे बलराम दास तत्व बखाणे
भक्ति र भाव जाणे जगन्नाथ पंचसखा ए ओडिशा महन्त।
म्लेच्छ पतित उद्धारिबा पाईं जनम लभिले ओडिशा भुईं।”
- उपरोक्त पंक्तियों का भावार्थ है कि पंचसखाओं में से श्री यशोबंत दास जी महाराज आगम निगम के संबंध में सभी बातों को जानने में समर्थ थे।
- महापुरुष शिशु अनंत दास जी महाराज सांकेतिक गणित के माध्यम से भविष्य जानने में समर्थ थे।
- महापुरुष अच्युतानंद दास जी महाराज भूत, वर्तमान एवं भविष्य आदि के ज्ञाता एवं काल तत्वदर्शी थे
- महापुरुष बलराम दास जी महाराज शास्त्र एवं ब्रह्माण्ड के तत्व ज्ञान से संपन्न थे।
- अष्टादश पुराण के भक्ति तत्व का ज्ञान सबसे अधिक महापुरुष जगन्नाथ दास जी महाराज को ही था।
पंचसखाओं ने भविष्य मालिका ग्रंथ के माध्यम से जो भविष्य वाणी की है उस में स्पष्ट रूप से श्रीजगन्नाथ जी तथा निराकार जी के निर्देश से भक्त जनों का उद्धार, भक्त और भगवान का मिलन, पापियों और दुराचारी लोगों का विनाश और दिव्य सतयुग के आरंभ के संबंध में भविष्य मालिका ग्रंथ में उल्लेख किया है। वही सब ग्रंथ अभी मनुष्य समाज के लिए मृत्यु संजीवनी है।
वर्तमान समय में ब्रह्माण्ड में महाविनाश का समय उपनित (निकट) है, इस घड़ी संधि समय में भविष्य मालिका का अनुसरण करके महाप्रभु जी के नाम और उनकी शरण में जाने के अतिरिक्त और कोई अन्य मार्ग नहीं है।
“जय जगन्नाथ”